POCSO अधिनियम की जेंडर‑न्यूट्रैलिटी: न्यायिक दृष्टिकोण, विवाद और भविष्य की दिशा
भारत में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने और उनके अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012 (POCSO Act) बनाया गया। यह अधिनियम बच्चों को यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़, आक्रामक यौन व्यवहार, अश्लील सामग्री और अन्य प्रकार के यौन अपराधों से बचाने के लिए विस्तृत कानूनी ढांचा प्रदान करता है। बच्चों के साथ यौन अपराध केवल व्यक्तिगत अपराध नहीं हैं; ये समाज में सुरक्षा, नैतिकता और सामाजिक संरचना पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इसलिए, POCSO अधिनियम का उद्देश्य केवल दंडात्मक नहीं, बल्कि सुरक्षात्मक, निवारक और सुधारात्मक भी है।
अधिनियम की जेंडर‑न्यूट्रैलिटी पर लंबे समय से बहस चल रही है। विशेष रूप से यह प्रश्न उठता है कि क्या यह अधिनियम महिला अभियुक्तों पर समान रूप से लागू होता है या केवल पुरुष अभियुक्तों के लिए है। इस विवाद ने न्यायालयों में विभिन्न मामलों में महत्वपूर्ण बहस पैदा की है। सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों ने इस मुद्दे पर कई बार विचार किया है और स्पष्ट किया है कि अधिनियम का उद्देश्य सभी बच्चों और सभी अभियुक्तों के लिए समान रूप से लागू होना है।
POCSO अधिनियम ने बच्चों के प्रति अपराधों की परिभाषा में व्यापकता लाई है। इसमें न केवल शारीरिक आक्रमण बल्कि मानसिक उत्पीड़न, धमकी, अश्लील सामग्री और डिजिटल माध्यमों से यौन उत्पीड़न को भी अपराध माना गया है। इस अधिनियम की संरचना सुनिश्चित करती है कि बच्चों की सुरक्षा की दृष्टि से अपराध की गंभीरता के आधार पर उचित कानूनी कार्रवाई की जा सके।
अधिनियम के तहत 'child' की परिभाषा में किसी भी प्रकार का लिंग‑भेद नहीं किया गया। इसका मतलब यह है कि यह अधिनियम लड़कियों और लड़कों, दोनों के लिए समान रूप से सुरक्षा सुनिश्चित करता है। हालांकि, अधिनियम की भाषा में 'he/his' जैसे शब्दों का प्रयोग कुछ स्थानों पर किया गया है। यह पारंपरिक दृष्टिकोण से पुरुष केंद्रित प्रतीत हो सकता है, लेकिन न्यायालयों ने इसे व्यापक और लिंग‑न्यूट्रल रूप में व्याख्यायित किया है।
POCSO अधिनियम की जेंडर‑न्यूट्रैलिटी कैसे सुनिश्चित की जाती है, न्यायिक दृष्टिकोण क्या है, और भविष्य में इस अधिनियम के संशोधन और सुधार की दिशा क्या हो सकती है। इस लेख में हम कानूनी संरचना, न्यायिक निर्णय, विवाद और सुधार सुझावों का गहन और विश्लेषणात्मक अध्ययन करेंगे।
विधिक पृष्ठभूमि और उद्देश्य
POCSO अधिनियम का निर्माण भारत में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने, उन्हें तुरंत न्याय प्रदान करने और अपराधियों को दंडित करने के लिए किया गया था। अधिनियम ने अपराध की व्यापक परिभाषा दी है और इसे लिंग‑विशेषता से मुक्त रखा है।
मुख्य प्रावधान
-
धारा 3: Penetrative Sexual Assaultयह धारा किसी भी बच्चे के खिलाफ शारीरिक घुसपैठ या आक्रामक यौन व्यवहार को अपराध के दायरे में लाती है। इसका उद्देश्य बच्चों को अत्यधिक गंभीर यौन अपराधों से बचाना और न्यायिक कार्रवाई को तेज़ बनाना है।
-
धारा 5: Sexual Assaultबच्चों के खिलाफ किसी भी प्रकार का यौन उत्पीड़न, जिसमें शारीरिक संपर्क, छेड़छाड़ या धमकी शामिल हो, इस धारा के अंतर्गत अपराध माना गया है।
-
धारा 7: Sexual Harassmentबच्चों के साथ यौन उत्पीड़न और असभ्य व्यवहार को अपराध माना गया है। यह धारा बच्चों की मानसिक और भावनात्मक सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
-
धारा 11: Pornographic Contentबच्चों की अश्लील सामग्री का निर्माण, संग्रह और वितरण अपराध के दायरे में आता है। इस धारा का उद्देश्य बच्चों के नैतिक और सामाजिक विकास की रक्षा करना है।
लिंग‑न्यूट्रैलिटी का महत्व
अधिनियम में प्रयुक्त 'he/his' शब्द केवल पारंपरिक भाषा का परिणाम हैं। न्यायालयों ने स्पष्ट किया कि इन शब्दों को व्यापक दृष्टिकोण से समझना चाहिए। अधिनियम का उद्देश्य किसी विशेष लिंग को सुरक्षा देना नहीं, बल्कि सभी बच्चों की सुरक्षा और सभी अभियुक्तों की कानूनी जिम्मेदारी तय करना है।
POCSO अधिनियम की जेंडर‑न्यूट्रैलिटी सुनिश्चित करती है कि सभी अपराधियों को कानून के दायरे में लाया जा सके, चाहे वह पुरुष हो, महिला हो या ट्रांसजेंडर। इससे बच्चों की सुरक्षा के साथ-साथ न्याय प्रक्रिया में निष्पक्षता और समानता भी बनी रहती है।
अधिनियम की व्याख्या में यह भी ध्यान रखा गया है कि किसी भी प्रकार का लिंग‑भेद बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा और अभियोजन की प्रक्रिया में बाधा नहीं बन सकता। न्यायालयों ने इस बात पर जोर दिया है कि बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि है और अधिनियम की भाषा किसी भी लिंग के अभियुक्त के लिए बाधक नहीं होनी चाहिए।
न्यायिक दृष्टिकोण और निर्णय
दिल्ली उच्च न्यायालय का दृष्टांत
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि POCSO अधिनियम के तहत 'he' शब्द का अर्थ केवल पुरुषों तक सीमित नहीं है। अदालत ने कहा कि 'he' का अर्थ 'any person' है। महिला अभियुक्त के खिलाफ ट्रायल जारी रखने का आदेश देते हुए अदालत ने यह स्थापित किया कि अधिनियम की व्याख्या लिंग‑न्यूट्रल रूप में की जानी चाहिए।
अदालत ने यह भी कहा कि कानून का उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है और किसी भी प्रकार की लैंगिक बाधा अपराधियों की कानूनी जिम्मेदारी तय करने में रुकावट नहीं बन सकती। यह दृष्टिकोण न्यायिक प्रक्रिया में समानता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करता है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय का दृष्टांत
कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी POCSO अधिनियम को जेंडर‑न्यूट्रल घोषित किया। अदालत ने महिला अभियुक्त के खिलाफ आरोपों को निरस्त करने की याचिका खारिज कर दी। अदालत ने स्पष्ट किया कि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना कानून का प्राथमिक उद्देश्य है और यह किसी भी लिंग के अभियुक्त पर समान रूप से लागू होता है।
अदालत ने यह भी कहा कि अधिनियम की भाषा में प्रयुक्त 'he/his' शब्द का अर्थ केवल पुरुषों तक सीमित नहीं है और इसे व्यापक रूप से समझा जाना चाहिए। यह निर्णय POCSO अधिनियम की व्याख्या में न्यायिक स्पष्टता और समानता का प्रतीक है।
सुप्रीम कोर्ट का विचार
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में POCSO अधिनियम की जेंडर‑न्यूट्रैलिटी पर विचार करने का निर्णय लिया। महिला अभियुक्त के खिलाफ ट्रायल पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत सुनवाई का आदेश दिया। यह निर्णय न्यायिक दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है और यह स्पष्ट करता है कि कानून की व्याख्या समय और सामाजिक बदलाव के अनुरूप होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिनियम का उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा है और यह किसी भी लिंग के अभियुक्त के लिए समान रूप से लागू होता है। इससे न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता और कानूनी समानता सुनिश्चित होती है।
चुनौतियाँ और विवाद
भाषाई अस्पष्टता
अधिनियम में 'he/his' जैसे सर्वनामों का प्रयोग भ्रम उत्पन्न करता है। न्यायालयों ने इसे लिंग‑न्यूट्रल व्याख्या दी, लेकिन भाषा की अस्पष्टता अभी भी विवाद का कारण बनी हुई है। यह अस्पष्टता विशेष रूप से महिला और ट्रांसजेंडर अभियुक्तों के मामलों में अधिक प्रकट होती है।
महिला अभियुक्तों के खिलाफ अभियोजन
इतिहास में महिलाओं को कम अपराधी माना गया। इसके कारण महिला अभियुक्तों के खिलाफ ट्रायल में देरी या अवहेलना होती रही। न्यायालयों ने स्पष्ट किया कि POCSO अधिनियम की व्याख्या में यह धारणा बाधक नहीं होनी चाहिए और सभी अभियुक्तों को समान कानूनी प्रक्रिया का लाभ मिलना चाहिए।
ट्रांसजेंडर और नॉन‑बाइनरी स्थिति
POCSO अधिनियम में ट्रांसजेंडर और नॉन‑बाइनरी अभियुक्तों के मामलों में स्पष्ट व्याख्या नहीं है। इसे दूर करने के लिए स्पष्ट नियम और दिशानिर्देश आवश्यक हैं। न्यायालयों ने यह संकेत दिया है कि अधिनियम की जेंडर‑न्यूट्रैलिटी को सभी लिंग पहचान वाले अभियुक्तों पर लागू किया जाना चाहिए।
साक्ष्य और ट्रायल प्रक्रिया
बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ट्रायल प्रक्रिया में सुधार आवश्यक है। देरी, साक्ष्य की कमी और जागरूकता की कमी अभी भी बड़ी चुनौती हैं। न्यायपालिका ने यह कहा है कि ट्रायल प्रक्रिया को बाल‑मित्र और तेज़ बनाना आवश्यक है, ताकि बच्चों के अधिकारों की रक्षा हो सके।
भविष्य की दिशा और सुधार सुझाव
अधिनियम में संशोधन
POCSO अधिनियम की भाषा को पूरी तरह से जेंडर‑न्यूट्रल बनाना आवश्यक है। शब्दों का चयन सावधानीपूर्वक करना चाहिए, जैसे 'any person' या 'whoever'। इससे अधिनियम की व्याख्या में कोई अस्पष्टता नहीं रहेगी और सभी अभियुक्तों को समान कानूनी दायरा प्राप्त होगा।
जागरूकता और शिक्षा
समाज और न्यायिक अधिकारियों को अधिनियम की जेंडर‑न्यूट्रैलिटी के बारे में प्रशिक्षण और जागरूकता प्रदान करनी चाहिए। इससे बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है और अधिनियम के व्यापक अनुप्रयोग को समझना आसान होता है।
विशेष अदालतें और प्रक्रियागत सुधार
ट्रायल को तेज, पारदर्शी और बाल‑मित्र बनाने के लिए विशेष अदालतों का निर्माण करना आवश्यक है। विशेष अदालतें न केवल न्याय की गति बढ़ाती हैं बल्कि बच्चों के प्रति न्यायिक प्रक्रिया को संवेदनशील और सुरक्षित बनाती हैं।
समान अवसर और निष्पक्षता
सभी बच्चों और अभियुक्तों के मामलों में समान सुरक्षा और निष्पक्षता सुनिश्चित करनी चाहिए। इससे कानून का उद्देश्य पूरा होता है और न्यायपालिका में विश्वास बढ़ता है।
POCSO अधिनियम ने बच्चों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचा प्रस्तुत किया है। न्यायालयों ने इसकी जेंडर‑न्यूट्रैलिटी की पुष्टि की है। हालांकि भाषा की अस्पष्टता, महिला और ट्रांसजेंडर अभियुक्तों के मामलों में चुनौतियाँ और ट्रायल प्रक्रिया की देरी जैसी समस्याएँ अभी भी मौजूद हैं।
उपयुक्त संशोधन और सुधार से यह अधिनियम सर्वसमावेशी और निष्पक्ष कानून बन सकता है। जेंडर‑न्यूट्रल भाषा, जागरूकता, विशेष अदालतें और निष्पक्ष ट्रायल प्रक्रिया के माध्यम से अधिनियम अपने उद्देश्य को पूरी तरह से पूरा कर सकता है।
इस प्रकार, POCSO अधिनियम न केवल बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में समानता, निष्पक्षता और कानूनी स्पष्टता को भी बढ़ावा देता है। इसके सुधार और संशोधन से यह भविष्य में और भी अधिक प्रभावी और व्यापक कानून बन सकता है, जो सभी बच्चों और सभी अभियुक्तों के लिए समान सुरक्षा सुनिश्चित करे।
