भारत में विदेशी वकीलों की उपस्थिति: एक उभरता हुआ विधिक प्रश्न
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय कानूनी बाज़ार वैश्विक आर्थिक परिवर्तनों के साथ अधिक जुड़ने लगा है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार, विदेशी निवेश, और cross-border arbitration के विस्तार ने बार-बार यह प्रश्न खड़ा किया है कि भारत में विदेशी नागरिकों की कानूनी प्रैक्टिस को किस हद तक अनुमति दी जानी चाहिए।
इसी निरंतर बहस को एक औपचारिक दिशा देने के लिए Bar Council of India ने 4 नवंबर 2025 को एक विस्तृत नियमावली जारी की— Bar Council of India Rules on Enrolment and Practice of Foreign Nationals, 2025। यह नियमावली पहली बार विदेशी वकीलों की भारत में भूमिका को स्पष्ट और नियंत्रित रूप में परिभाषित करती है।
नई BCI नियमावली का मूल उद्देश्य: वैश्विक कानूनी परिदृश्य में भारत की स्थिति
इस नियमावली का मूल आधार अंतरराष्ट्रीय “reciprocity” है। BCI का यह साफ़ संदेश है कि— जब तक भारत के वकीलों को किसी अन्य देश में समान अधिकार नहीं दिए जाते, उस देश के वकीलों को भी भारत में वही अधिकार नहीं मिलेंगे। यह दृष्टिकोण न तो प्रतिबंधात्मक है और न ही पूरी तरह खुला। बल्कि यह भारत को एक संतुलित वकालत–बाज़ार बनाने की दिशा में एक सावधानीपूर्वक कदम है। भारत यह संकेत देता है कि वह विदेशी कानूनी विशेषज्ञता का स्वागत करता है, लेकिन भारतीय अधिवक्ताओं के अधिकारों की कीमत पर नहीं।
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कौन-से विदेशी नागरिक भारतीय कानूनी ढाँचे में प्रवेश कर सकते हैं? एक स्पष्ट निर्धारण
नियमावली दो तरह के foreign nationals को भारत में काम करने की अनुमति देती है—
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जिनके पास Indian law degree है।
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जिनके पास foreign law degree है, और जो भारत में गैर-विवादित (non-litigious) कानूनी सेवाएँ देना चाहते हैं।
BCI ने यहां स्पष्ट सीमा-रेखा खींची है: केवल वही foreign nationals इस प्रणाली में प्रवेश कर सकते हैं जिनके देश में भारतीय वकीलों को अवसर उपलब्ध हैं। यह दृष्टिकोण भारतीय अधिवक्ताओं के हितों की सुरक्षा के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए आवश्यक द्वार भी खुला रखता है।
अदालतों में विदेशी वकीलों पर रोक: भारतीय न्याय-व्यवस्था की मूलभूत नीति
नियमावली का सबसे ठोस प्रावधान यह है कि कोई भी foreign national— अदालत, ट्रिब्यूनल, अथॉरिटी, quasi-judicial मंच पर प्रकट नहीं हो सकता। यह प्रतिबंध भारतीय न्याय-व्यवस्था के मूल सिद्धांत— “अनुच्छेद 29 और 30, Advocates Act के तहत India में वकालत का अधिकार केवल Indian Advocates को प्राप्त है।” की पुनर्पुष्टि करता है। विदेशी वकीलों को केवल advisory, transactional, और documentation कार्य तक सीमित रखा गया है। न्याय-प्रक्रिया के कोर क्षेत्र में उनका प्रवेश प्रतिबंधित है।
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Indian Law Degree और Foreign Lawyers: सीमाएँ, अधिकार और दायित्व
वकालत में सदस्यता से वंचित: विदेशी वकीलों पर कठोर प्रतिबंधों का विश्लेषण
BCI ने foreign nationals को किसी भी प्रकार की bar membership से दूर रखा है—
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किसी State Bar Council की सदस्यता नहीं,
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किसी Bar Association में शामिल नहीं,
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मतदान का अधिकार नहीं,
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कोई पद धारण नहीं कर सकते।
यह सीमा केवल अधिकारों का मुद्दा नहीं है; यह भारतीय bar politics और legal governance के भीतर विदेशी प्रभाव से बचाव का एक उपाय भी है। उनका पंजीकरण अलग FNR enrolment number से किया जाएगा, जिससे उनकी स्थिति किसी भी भारतीय अधिवक्ता से स्पष्ट रूप से अलग पहचान रखे।
कल्याण योजनाओं और सरकारी पैनलों से बहिष्करण: BCI का तर्क क्या है?
नए नियम foreign nationals को— सरकारी legal panels, public authorities, legal aid panels, welfare schemes से पूर्णतः बाहर रखते हैं। यह विकल्प दो उद्देश्य साधता है:
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भारतीय वकीलों के अवसरों की रक्षा
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सार्वजनिक संसाधनों का विदेशी नागरिकों के लिए उपयोग से बचाव
क्योंकि welfare schemes सार्वजनिक धन से संचालित होती हैं, इसलिए यह व्यावहारिक निर्णय माना जा सकता है।
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भारतीय भूमि पर कार्य करने के लिए वीज़ा और अनुमति: कानूनी वैधता का आधार
नियम स्पष्ट करते हैं कि foreign national का enrolment तभी प्रभावी है जब— उसके पास सही वीज़ा ,वैध work authorisation, Ministry of Home Affairs की अनुमति हो। यदि यह अनुमति समाप्त या रद्द हो जाए, तो उसका enrolment स्वतः निलंबित या रद्द माना जाएगा। यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा और immigration compliance को ध्यान में रखते हुए उचित प्रतीत होता है।
आचरण और अनुशासन पर समान मानदंड: विदेशी वकीलों पर BCI की सख़्त निगरानी
BCI ने foreign lawyers पर वही professional conduct rules लागू किए हैं जो भारतीय अधिवक्ताओं पर लागू होते हैं। इसका अर्थ दो स्तरों पर महत्वपूर्ण है—
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विदेशी वकीलों को भी भारतीय ethical standards का पालन करना होगा।
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misconduct की स्थिति में उन पर उतनी ही कठोर कार्यवाही संभव है जितनी किसी भारतीय वकील पर।
यह विनियमन उन्हें किसी भी रूप में “privileged position” मिलने से रोकता है।
किन परिस्थितियों में foreign enrolment रद्द होगा? एक नीतिगत समीक्षा
नियम पाँच प्रमुख परिस्थितियों में foreign national का registration रद्द कर सकते हैं—
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reciprocity का समाप्त हो जाना
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visa/work permit का खत्म होना
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misconduct
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fraudulent enrolment
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national interest और public order के कारण
यह framework लचीला भी है और सख़्त भी; दोनों ही दृष्टिकोण से इसे संतुलित माना जा सकता है।
भारतीय अधिवक्ताओं के विशेषाधिकार: BCI की सुरक्षा-रेखा कहाँ खड़ी है?
नए नियमों का व्यापक प्रभाव: भारतीय कानूनी पेशे के लिए अवसर और चिंताएँ
नई प्रणाली से तीन तरह के प्रभाव सामने आते हैं—
Advisory और International practice को संरचना मिलती है-Foreign participation corporate law और cross-border advisory में सहायक हो सकती है।
Litigation sphere भारतीय वकीलों के लिए सुरक्षित रहता है- कोई प्रतिस्पर्धा या अधिकार संघर्ष नहीं।
Indian legal market धीरे-धीरे global standards से जुड़ता है- नियंत्रित और सुरक्षित तरीके से।
यह मिश्रित मॉडल developing legal economies के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है।
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निष्कर्ष: वैश्विक प्रतिस्पर्धा और भारतीय वकालत—संतुलन की खोज
हाँ, लेकिन केवल non-litigation services जैसे drafting, corporate advisory, compliance, international contracts आदि तक सीमित रहेगा। वह किसी bar association का सदस्य नहीं बन सकता।
नहीं।Foreign nationals किसी भी State Bar Council या Bar Association की सदस्यता नहीं ले सकते और न ही किसी चुनाव में वोट या पद ग्रहण कर सकते हैं।
हाँ। Visa या work authorisation समाप्त होते ही उनका enrolment स्वतः निलंबित या रद्द हो सकता है।
हाँ, foreign lawyers को international commercial arbitration के मामलों में advisory और appearance दोनों की अनुमति दी जा सकती है, बशर्ते यह भारतीय अदालतों की कार्यवाही न हो।
