दिल्ली हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: नागार्जुन के नाम और छवि की सुरक्षा और व्यक्तित्व अधिकारों की न्यायिक व्याख्या
जब पहचान भी संपत्ति बन गई
आज की डिजिटल दुनिया में हम अपने चेहरे, नाम और आवाज़ को जितनी बार कैमरे और स्क्रीन पर साझा करते हैं, उतनी ही बार वह डेटा बन जाता है — जिसे कोई भी डाउनलोड कर सकता है, एडिट कर सकता है, और बिना आपकी अनुमति के, किसी वीडियो, ऐड या ऐप में डाल सकता है।
यह एक आम बात बनती जा रही है — लेकिन इसका कानूनी और नैतिक असर बहुत गहरा है।
हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने इसी विषय पर एक मील का पत्थर साबित होने वाला आदेश पारित किया, जिसमें प्रसिद्ध तेलुगु अभिनेता "नागार्जुन अक्किनेनी" की याचिका पर सुनवाई करते हुए उनके व्यक्तित्व अधिकारों (personality rights) की रक्षा की गई।
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि:
“कोई भी नागार्जुन का नाम, छवि, आवाज़, व्यक्तित्व विशेषताएं या उनके जैसे दिखने वाला कंटेंट बिना अनुमति उपयोग नहीं कर सकता – चाहे वो वीडियो हो, वेबसाइट, सोशल मीडिया, या AI टेक्नोलॉजी।”
इस निर्णय के केंद्र में है एक बड़ा सवाल – क्या किसी व्यक्ति की पहचान (identity) केवल उसकी निजी चीज़ है, या वह उसकी संपत्ति भी है? और क्या कोई और उसकी पहचान से लाभ उठा सकता है, या यह कानूनी रूप से अनुचित होगा?
यह केस क्यों महत्वपूर्ण है?
भारत में व्यक्तित्व अधिकारों की स्थिति क्या है?
AI और डिजिटल युग में पहचान की चोरी कैसे एक बड़ा खतरा बन गई है?
और आम लोगों को इस आदेश से क्या सीखना चाहिए?
तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर अभिनेता "नागार्जुन अक्किनेनी" ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक सिविल मुकदमा दायर किया। याचिका में उन्होंने कहा कि कुछ वेबसाइटें, सोशल मीडिया पेज, यूट्यूब चैनल्स और ऑनलाइन कंपनियाँ:
*उनके नाम और फोटो का अनुमति के बिना प्रचार सामग्री में उपयोग कर रही हैं,
*उनकी आवाज़ को AI टेक्नोलॉजी से नक़ल कर रही हैं,
*Deepfake तकनीक से उनके जैसे दिखने वाले नकली वीडियो बना रही हैं,
*और इस पूरे उपयोग से ऐसा भ्रम पैदा हो रहा है कि नागार्जुन ने खुद इनका समर्थन किया है।
उनके व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा,
उनकी छवि, नाम और आवाज़ के किसी भी अनधिकृत उपयोग पर रोक,
ऐसे सभी वीडियो, वेबसाइट लिंक, सोशल मीडिया पोस्ट हटाने का आदेश,
और भविष्य में किसी भी प्रकार के गैरकानूनी इस्तेमाल को रोके जाने का अनुरोध।
"प्रथम दृष्टया (prima facie) यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता के व्यक्तित्व अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।" इसलिए अदालत ने:
*जिन वेबसाइटों या URL पर ऐसा कंटेंट था, उन्हें 72 घंटे में हटाने या ब्लॉक करने का आदेश दिया,
*केंद्र सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय व दूरसंचार विभाग को निर्देश दिए कि वे भी इन प्लेटफार्मों को हटवाएँ।
व्यक्तित्व अधिकार (Personality Rights) क्या होते हैं?
"Personality Rights यानी ऐसा कानूनी अधिकार जो किसी व्यक्ति को अपने नाम, फोटो, आवाज़, चेहरे, सिग्नेचर स्टाइल — यानी उसकी पहचान — पर नियंत्रण देता है।"
मतलब:
आपकी छवि, आपका नाम, आपकी आवाज़ आपकी संपत्ति है।
कोई दूसरा उसका उपयोग करे, तो पहले आपकी इजाज़त लेनी होगी।
यह अधिकार क्यों ज़रूरी है?
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आर्थिक हित: सेलिब्रिटीज़ का नाम और चेहरा एक ब्रांड होता है — उनका गलत इस्तेमाल आर्थिक नुकसान पहुंचा सकता है।
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प्रतिष्ठा: फर्जी कंटेंट से व्यक्ति की छवि को नुकसान हो सकता है।
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भ्रम की स्थिति: दर्शक यह सोच सकते हैं कि व्यक्ति ने किसी ब्रांड या विचार को समर्थन दिया है, जबकि हकीकत कुछ और होती है।
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निजता का उल्लंघन: व्यक्ति की निजी पहचान का अनधिकृत इस्तेमाल उसकी स्वतंत्रता और सम्मान पर हमला है।
क्या ये सिर्फ सेलिब्रिटी को मिलते हैं?
नहीं! हर व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त है। फर्क बस इतना है कि सेलिब्रिटी की पहचान आमतौर पर ज्यादा वैल्यू रखती है, इसलिए ऐसे मामले ज्यादा सामने आते हैं।
जब AI और Deepfake बना पहचान का चोर
इस केस को अलग बनाता है एक नया पहलू — AI और Deepfake टेक्नोलॉजी का अनधिकृत उपयोग।
नागार्जुन ने दावा किया कि:
*उनकी आवाज़ को AI वॉइस क्लोनिंग से दोहराया गया,
*Deepfake वीडियो में उनके जैसे दिखने वाले नकली इंटरव्यू बनाए गए,
*उनकी छवि को face morphing से बदलकर गलत संदर्भ में दिखाया गया।
खतरा क्या है?
*Fake news, प्रचार, स्कैम्स, धोखाधड़ी — ये सब AI generated फेस और वॉइस से हो सकते हैं।
*लोग असली और नकली में फर्क नहीं कर पाते — और व्यक्ति की छवि को स्थायी नुकसान हो सकता है।
अदालत का कानूनी आधार – व्यक्तित्व अधिकारों की न्यायिक व्याख्या
दिल्ली हाईकोर्ट का यह आदेश सिर्फ एक अंतरिम रोक नहीं था — यह उस कानूनी सोच की मिसाल है जो बताती है कि भारत में न्यायपालिका "व्यक्तित्व अधिकारों" को कितनी गंभीरता से लेती है, विशेषकर डिजिटल युग में।
अदालत ने किन बातों पर ज़ोर दिया?
*सुप्रीम कोर्ट के "Puttaswamy (2017) "फैसले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि "निजता का अधिकार व्यक्ति की गरिमा से जुड़ा है।"
*अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता की पहचान उनके व्यावसायिक जीवन का हिस्सा है।
*इसे एक संपत्ति की तरह संरक्षित किया जा सकता है।
*यह सिद्धांत कहता है कि अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य की पहचान से यह दिखाने की कोशिश करता है कि वह उसी से जुड़ा है — तो यह उपभोक्ता को भ्रमित करना और लाभ उठाना है।
*नागार्जुन का मामला भी कुछ ऐसा ही था, जहाँ उनके नाम और छवि का उपयोग व्यावसायिक रूप से किया जा रहा था।
अदालत ने यह भी संकेत दिया कि व्यक्तित्व अधिकार, भले ही परंपरागत बौद्धिक संपदा (IP) के दायरे में सीधे ना आएं, लेकिन इनका आर्थिक मूल्य है — और इन्हें IP जैसी ही सुरक्षा मिलनी चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यक्तित्व अधिकार – वैश्विक संदर्भ
भारत में भले ही यह अधिकार अभी कानूनी रूप से स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन दुनिया के कई देशों में व्यक्तित्व अधिकार (personality/publicity rights) की विस्तृत कानूनी मान्यता है।
*कैलिफ़ोर्निया और न्यूयॉर्क जैसे राज्य इसे व्यक्ति की संपत्ति मानते हैं, और इसके दुरुपयोग पर मुकदमा किया जा सकता है।
*Michael Jordan, Tom Cruise, और अन्य कई सेलिब्रिटीज़ ने अपने नाम/छवि के दुरुपयोग पर कानूनी कार्यवाही की है।
*यूके में यह अधिकार सीधे नहीं है, लेकिन ब्रीच ऑफ कॉन्फिडेंस, डेटा प्रोटेक्शन, और पासिंग ऑफ के जरिए सुरक्षा मिलती है।
*Courts वहां भी मानते हैं कि सेलिब्रिटीज़ की छवि का अवैध व्यापारिक इस्तेमाल गलत है।
*यहाँ तक कि मृत व्यक्ति के व्यक्तित्व अधिकार भी मान्य होते हैं।
*वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइज़ेशन (WIPO) भी लगातार व्यक्तित्व अधिकारों को IPR (बौद्धिक संपदा अधिकार) के दायरे में लाने की कोशिश कर रही है।
व्यक्तित्व अधिकार और भारतीय संविधान – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम निजता और गरिमा
*अनुच्छेद 19(1)(a): यह हर भारतीय नागरिक को "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" का अधिकार देता है — यानी बोलने, लिखने, छापने, चित्र बनाने और किसी भी रूप में विचार व्यक्त करने की आज़ादी।
*अनुच्छेद 21: यह हर व्यक्ति को "जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार" देता है।
इसी के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट ने "Right to Privacy", यानी निजता का अधिकार, 2017 के Puttaswamy Judgment में एक मौलिक अधिकार घोषित किया।
*नागार्जुन कहते हैं: “यह मेरी पहचान है — और तुम बिना अनुमति इस्तेमाल नहीं कर सकते।”
अब सवाल यह उठता है:
क्या एक की "freedom of expression" दूसरे की "right to privacy" या "dignity" को कुचल सकती है?जवाब है – नहीं!
न्यायपालिका का दृष्टिकोण:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा: "व्यक्ति की निजी जानकारी, फोटो या जीवन का विवरण बिना अनुमति प्रकाशित करना, निजता के अधिकार का उल्लंघन है।"
डिजिटल दुनिया में यह संतुलन और कठिन हो जाता है: *एक ओर विचारों की आज़ादी है — जो लोकतंत्र की आत्मा है।दूसरी ओर व्यक्ति की पहचान और गरिमा की रक्षा है — जो मानवाधिकारों का मूल है।
इसलिए अदालतों का रुख यही होता है: "जहाँ कोई व्यक्ति सार्वजनिक रूप से अपना नाम या छवि किसी काम के लिए नहीं देता — वहाँ उसकी निजता को प्राथमिकता दी जाएगी।"
क्या प्लेटफॉर्म्स जिम्मेदार हैं?
Information Technology Act, 2000
→ सेक्शन 66E (privacy violation)
→ सेक्शन 67 (obscene content)
→ सेक्शन 69A (blocking of unlawful websites)
Intermediary Guidelines, 2021
→ प्लेटफॉर्म्स को शिकायत पर 36 घंटे में आपत्तिजनक कंटेंट हटाना होगा।
→ अगर वे ऐसा नहीं करते, तो उन पर भी केस बन सकता है।
"Delhi High Court" ने नागार्जुन केस में यही किया — सरकार के IT मंत्रालय को भी शामिल किया ताकि सभी URL हटाए जा सकें।
बहुत बढ़िया Sumit ji, अब हम लेख के भाग 8 की ओर बढ़ते हैं — जो इस केस को आम जनता, कंटेंट क्रिएटर्स और सोशल मीडिया यूज़र्स के नजरिए से समझाएगा। इसमें हम जानेंगे कि कैसे यह फैसला सिर्फ सेलिब्रिटीज़ नहीं, बल्कि हर नागरिक के अधिकारों की रक्षा करता है।
आम नागरिक, कंटेंट क्रिएटर्स और सोशल मीडिया यूज़र्स के लिए ये फैसला क्यों ज़रूरी है?
1. क्या ये सिर्फ मशहूर लोगों के लिए है?
नहीं! नागार्जुन जैसे सेलिब्रिटीज़ का मामला अदालत तक इसलिए पहुँचता है क्योंकि उनका नाम और चेहरा बड़े स्तर पर इस्तेमाल होता है। लेकिन व्यक्तित्व अधिकार हर इंसान को मिलते हैं — चाहे वह आम नागरिक हो या सुपरस्टार।
अगर कोई आपके नाम से यूट्यूब चैनल बना ले, तो आप उस पर आपत्ति कर सकते हैं।
अगर कोई आपके चेहरे का deepfake बनाकर फेक वीडियो चलाए, तो ये आपराधिक कृत्य है।
*बहुत से लोग अनजाने में किसी मशहूर व्यक्ति का नाम/तस्वीर इस्तेमाल करते हैं, सोचते हैं कि इससे पब्लिसिटी मिलेगी।
*यदि कंटेंट “फैन एडिट” है, तो उसे स्पष्ट रूप से दर्शाएँ
*AI से बनी आवाज़ या चेहरा असली ना लगे — ऐसा प्रयास करें
आम नागरिक कैसे अपना अधिकार बचा सकता है?
*उस प्लेटफॉर्म पर शिकायत कर सकते हैं (Report/Flag)
*धारा 66E, 500, 509 IPC और IT Act 2000 के तहत FIR दर्ज कर सकते हैं
*यदि आप चाहते हैं कि सामग्री हटाई जाए, तो DMCA Takedown Notice भेज सकते हैं
5. स्कूल, कॉलेज और कानून के छात्रों के लिए यह केस क्यों जरूरी है?
*Puttaswamy Judgment, Publicity Rights, IP Law और Constitution — सबका समावेश है इसमें।
*Moot Court, Essay Writing, या Research Papers में यह केस उपयोगी साबित होगा।
निष्कर्ष – जब पहचान पर पहरा ज़रूरी हो गया
दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा अभिनेता नागार्जुन अक्किनेनी के पक्ष में दिया गया यह अंतरिम आदेश सिर्फ एक कानूनी निर्णय नहीं है — यह आने वाले समय के लिए डिजिटल नैतिकता और जिम्मेदारी की दिशा में उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम है।इस फैसले ने स्पष्ट कर दिया कि: “पहचान अब केवल एक सामाजिक तत्व नहीं, बल्कि कानूनी रूप से संरक्षित संपत्ति है।”
क्या सीखा इस पूरे मामले से?
*कोई भी व्यक्ति — चाहे वो सेलेब्रिटी हो या आम नागरिक — अपनी पहचान, नाम, फोटो, आवाज़ आदि पर अधिकार रखता है।
*अगर कोई बिना इजाज़त उनका इस्तेमाल करता है, तो वह कानून के खिलाफ है।
*AI और Deepfake जैसे टूल्स हमें नई रचनात्मकता देते हैं, लेकिन अगर इनका दुरुपयोग हो तो इससे किसी की प्रतिष्ठा, गरिमा और आज़ादी खतरे में पड़ सकती है।
*तकनीक को रेगुलेट करने की सख्त ज़रूरत है, खासकर जब इससे लोगों की निजी पहचान खतरे में हो।
*किसी और की पहचान का इस्तेमाल कर अपनी बात कहने की आज़ादी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं, बल्कि अधिकारों का हनन है।
*भारत का संविधान भी कहता है — कोई भी स्वतंत्रता “यथोचित प्रतिबंधों” के अधीन है।
1. व्यक्तित्व अधिकारों को स्पष्ट कानूनी दर्जा मिले
*भारत में अभी तक "Personality Rights" पर कोई समर्पित कानून नहीं है।
*ज़रूरत है कि संसद इस पर विधेयक लाए और इसे बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) के अंतर्गत या एक स्वतंत्र कानून के रूप में मान्यता दे।
*Facebook, Instagram, YouTube जैसे प्लेटफॉर्म को ये सुनिश्चित करना होगा कि उनकी साइट पर कोई भी अनधिकृत पहचान का दुरुपयोग न हो।
*रिपोर्टिंग सिस्टम और कंटेंट मॉडरेशन और मजबूत हों।
*स्कूलों, कॉलेजों और नागरिक संगठनों में डिजिटल पहचान, निजता, और AI से जुड़े खतरों पर प्रशिक्षण हो।
*कंटेंट क्रिएटर्स और इन्फ्लुएंसर्स के लिए लीगल ओरिएंटेशन अनिवार्य हो।
