भारत में गर्भपात का सवाल सिर्फ कानून का नहीं, बल्कि इंसानियत, निजी गरिमा और स्वास्थ्य के अधिकार का सवाल है। जब कोई महिला या लड़की गर्भवती होती है और परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं होतीं, तब उसके सामने कई डर, संदेह और भावनाएँ एक साथ खड़ी हो जाती हैं। लोग क्या कहेंगे, परिवार कैसे प्रतिक्रिया देगा, डॉक्टर जज तो नहीं करेगा, और सबसे बड़ा सवाल—क्या यह सब करना कानूनी है या नहीं? इन सभी सवालों में सबसे ज्यादा डर “कानून” का होता है, क्योंकि वर्षों से समाज में यह गलतफहमी फैली हुई है कि गर्भपात यानी Abortion अपराध है। लेकिन सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है। भारत का कानून गर्भपात को एक स्वास्थ्य अधिकार की तरह देखता है और सुरक्षित चिकित्सा के साथ इसे करने की अनुमति देता है।
गर्भपात को कानूनी रूप से मान्यता देने का उद्देश्य यह नहीं कि महिलाएँ अपने निर्णयों में लापरवाह हो जाएँ, बल्कि यह है कि उन्हें असुरक्षित, छिपे हुए और खतरनाक अवैधानिक तरीकों से बचाया जा सके। 1971 में जब Medical Termination of Pregnancy Act (MTP Act) आया, तो यह अपने समय के हिसाब से बहुत प्रगतिशील कानून माना गया। इसका मकसद यह था कि कोई भी महिला अगर अनचाहे गर्भ से गुजर रही हो, या गर्भ उसकी जान के लिए खतरा बन रहा हो, तो उसे सुरक्षित और कानूनी सहायता मिले। समय के साथ 2021 में आए संशोधन ने इसे और आधुनिक बनाया और महिलाओं की गरिमा और निजता के अधिकार को और मजबूत किया, जैसा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में दिया गया है।
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भारत में गर्भपात कानूनी है, लेकिन एक निर्धारित प्रक्रिया के साथ। इसका तात्पर्य यह है कि अगर एक महिला गर्भपात कराना चाहती है, तो वह यह निर्णय स्वयं ले सकती है, बशर्ते वह 18 वर्ष से अधिक हो और मानसिक रूप से सक्षम हो। उसे न पति की अनुमति चाहिए, न परिवार की। यह बिंदु कानूनी रूप से स्पष्ट है और Supreme Court ने X vs NCT Delhi (2022) जैसे महत्वपूर्ण फैसलों में इसे और मजबूती दी है। इसलिए, अगर कोई डॉक्टर या क्लिनिक यह कहता है कि पति की सहमति जरूरी है, तो वह न केवल गलत है बल्कि यह महिला के अधिकारों का उल्लंघन भी है।
गर्भपात किन परिस्थितियों में कानूनी है, इसे समझना बेहद सरल है। अगर गर्भ महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बन रहा हो, अगर गर्भ बलात्कार का परिणाम हो, अगर नाबालिग गर्भवती हो, अगर गर्भनिरोधक असफल हुआ हो, या अगर भ्रूण में गंभीर विकार पाए जाते हों—तो गर्भपात करना पूरी तरह कानूनी है। इसे एक सरल उदाहरण से समझें। 28 साल की रेखा को तीसरे महीने में पता चलता है कि उसकी हार्ट कंडीशन ऐसी है कि गर्भ बनाए रखना उसकी जान के लिए जोखिम है। डॉक्टर भी यही सलाह देते हैं। ऐसी स्थिति में रेखा का गर्भपात सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि medically जरूरी है। इसी तरह, अगर किसी स्कैन में पता चले कि भ्रूण में ऐसी जन्मजात विकृति है जिसके कारण वह जन्म के बाद जीवित नहीं रह पाएगा, तो इस स्थिति में भी गर्भपात कानूनी रूप से अनुमन्य है।
कई बार लोग सोचते हैं कि क्या गर्भनिरोधक (Contraceptive) असफल होने पर गर्भपात किया जा सकता है? इसका उत्तर है—हाँ। पहले यह सुविधा सिर्फ विवाहित महिलाओं के लिए थी, लेकिन 2021 संशोधन के बाद अविवाहित महिलाओं को भी वही अधिकार दिया गया। इसका मतलब है कि अगर contraceptive का इस्तेमाल किया गया था लेकिन वह फेल हो गया, और गर्भ अनचाहा है, तो गर्भपात कराना कानूनन सुरक्षित और मान्य है।
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अक्सर इंटरनेट पर यह भ्रम फैला रहता है कि Indian Penal Code (IPC) गर्भपात को अपराध मानता है। यह भ्रम इसलिए पैदा होता है क्योंकि IPC की धारा 312 से 316 अवैध और असुरक्षित गर्भपात के खिलाफ हैं, यानी अगर कोई व्यक्ति बिना योग्य डॉक्टर के, बिना मान्यता प्राप्त क्लिनिक के और बिना चिकित्सीय प्रक्रिया के गर्भपात कराए, तो यह अपराध है। लेकिन MTP Act इन धाराओं को override करता है। इसका मतलब यह है कि अगर गर्भपात सरकारी या मान्यता प्राप्त निजी अस्पताल में योग्य डॉक्टर द्वारा किया जा रहा है, तो कोई भी IPC लागू नहीं होता, और न ही किसी तरह का पुलिस केस बनता है।
समय-सीमा इस कानून का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। भारत में गर्भपात 20 हफ्ते तक सामान्य परिस्थितियों में किया जा सकता है। अगर गर्भ 20 से 24 हफ्तों के बीच है और परिस्थितियाँ विशेष (जैसे यौन शोषण, marital rape, minor pregnancy, mental trauma, disability आदि) हैं, तो दो डॉक्टरों की सिफारिश पर गर्भपात कानूनी है। अगर 24 हफ्ते के बाद भ्रूण में गंभीर abnormality है, तो चिकित्सा बोर्ड की अनुमति पर गर्भपात किया जा सकता है। यह सिस्टम इसलिए बनाया गया है ताकि गर्भपात का निर्णय महिला की सुरक्षा और मेडिकल नैतिकता के साथ लिया जाए।
गर्भपात की वास्तविक प्रक्रिया बेहद सरल होती है, लेकिन डर और भ्रम के कारण लोग इसे कठिन मान लेते हैं। सबसे पहले महिला Gynecologist के पास जाती है। डॉक्टर उसकी मेडिकल हिस्ट्री, अल्ट्रासाउंड और आवश्यक टेस्ट देखते हैं। यदि गर्भ 8 हफ्ते तक है, तो medical abortion (दवाइयों) से प्रक्रिया हो जाती है। 8 से 20 हफ्ते में medical और surgical दोनों विकल्प मौजूद हैं। 20 से 24 हफ्तों में प्रक्रिया डॉक्टरों के संयुक्त निर्णय से की जाती है। इसके बाद consent form भरा जाता है, जिसे Form C कहा जाता है। 18+ महिला स्वयं साइन कर सकती है। Minor के मामले में guardian की अनुमति ली जाती है। गर्भपात के बाद follow-up checkup किया जाता है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि महिला पूरी तरह स्वस्थ है।
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यहाँ एक मानवीय मुद्दे को समझना बेहद जरूरी है। भारत में कई महिलाएँ आज भी “अवैध” तरीकों से गर्भपात कराती हैं क्योंकि समाज, परिवार या गलत सूचना के कारण वे डॉक्टर के पास जाने से डरती हैं। लेकिन यही वह स्थिति है जो जीवन को खतरे में डालती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी कहता है कि असुरक्षित गर्भपात दुनिया में मातृ मृत्यु का प्रमुख कारण है। इसलिए सुरक्षित और कानूनी गर्भपात किसी भी महिला का मूलभूत अधिकार है।
अब एक महत्वपूर्ण सामाजिक सच्चाई। गर्भपात को समाज अक्सर नैतिकता के आधार पर आंकता है, लेकिन कानून इसे स्वास्थ्य और गरिमा के आधार पर देखता है। किसी महिला को उसकी इच्छा के खिलाफ गर्भ रखने के लिए मजबूर करना उसके अधिकारों का हनन है। गर्भ उसका शरीर है, उसकी सहमति और उसका निर्णय ही सर्वोच्च होना चाहिए। ऐसे निर्णय चिकित्सा, मानवता और महिला की स्वतंत्रता को प्राथमिकता देते हैं।
अगर आप यह सब पढ़कर सोच रहे हों कि क्या गर्भपात कराने पर कोई पुलिस केस बन सकता है, तो आपको जानकर राहत मिलेगी कि सुरक्षित और कानूनी ढंग से किया गया गर्भपात बिल्कुल अपराध नहीं है। IPC सिर्फ उन मामलों में लागू होता है जहाँ गर्भपात अवैध, बिना डॉक्टर या बिना मेडिकल मान्यता के किया जाता है। इसलिए अगर आप या आपके जानने वाले किसी भी महिला को यह डर सताता है, तो यह भ्रम दूर कर देना जरूरी है कि डॉक्टर या अस्पताल गर्भपात पर पुलिस को बुला सकते हैं—यह न तो कानूनन संभव है और न नैतिक।
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अब सवाल यह भी आता है कि गर्भपात की लागत क्या होती है। सरकारी अस्पतालों में अधिकतर गर्भपात पूरी तरह मुफ्त होते हैं। निजी अस्पतालों में यह खर्च गर्भ की अवधि, प्रक्रिया के प्रकार और सुविधा के आधार पर 2000 से 25000 रुपये तक हो सकता है। कई शहरों में यह प्रक्रिया premium clinics में इससे अधिक भी हो सकती है, लेकिन सामान्य और मध्यम आय वर्ग के लिए सरकारी या मान्यता प्राप्त निजी अस्पताल पूरी तरह पर्याप्त होते हैं।
इस पूरे परिप्रेक्ष्य में एक बात बहुत स्पष्ट है कि भारत का कानून महिलाओं के अधिकारों को बहुत गंभीरता से लेता है। यह कानून सामाजिक कलंक को तोड़ता है और महिलाओं को उनके शरीर पर पूर्ण अधिकार देता है। यह मानता है कि गर्भपात कोई “पाप” नहीं, बल्कि परिस्थितियों में लिया गया चिकित्सा और व्यक्तिगत निर्णय है। यह कानून आधुनिक दृष्टिकोण को अपनाता है—जहाँ महिलाओं की इच्छा और उनका स्वास्थ्य सर्वोच्च है।
अंत में, यह समझना जरूरी है कि गर्भपात भारत में कानूनी है, सुरक्षित है और यह महिला की निजी स्वतंत्रता और गरिमा का हिस्सा है। इसका उद्देश्य सिर्फ एक मेडिकल प्रक्रिया को वैध करना नहीं, बल्कि महिलाओं को भय, शर्म, गलत सूचना और अवैध क्लीनिकों से मुक्त कराना है। जो महिलाएँ जानकारी की कमी से असुरक्षित गर्भपात के रास्ते चुन लेती हैं, वे अपने स्वास्थ्य और जीवन को जोखिम में डालती हैं। इसलिए यह लेख न सिर्फ कानूनी जानकारी है, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी है—कि हर महिला को अपने शरीर पर पूरा अधिकार है और कानून उसके साथ खड़ा है।
