भारत का संविधान सिर्फ कागज़ पर लिखा हुआ कानून नहीं है, बल्कि एक जीवंत ढांचा है जो समय, राजनीति, समाज और प्रशासन के बदलावों के साथ विकसित होता रहता है। इसी संविधान में एक ऐसा Article है जिसके बारे में आमतौर पर कम चर्चा होती है, लेकिन जब भी भारत के राजनीतिक ढांचे, संघीय संरचना, लोकतांत्रिक अधिकारों और केंद्र–राज्य सम्बन्धों पर बहस होती है, यह प्रावधान फिर सुर्खियों में आ जाता है — यह है Article 240।
पिछले कुछ हफ्तों में यह Article एक बार फिर चर्चा में आया, वह भी किसी अकादमिक बहस या कानूनी किताब के कारण नहीं, बल्कि Punjab में गवर्नर और राज्य सरकार के बीच चल रही शक्ति-संघर्ष की वजह से। अदालतों में दलीलें दी गईं, राजनीतिक मंचों से बयान आए और प्रशासन ने भी इस स्थिति को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी। उसी दौरान संविधान, संघीय ढांचे, राज्य की स्वायत्तता और राष्ट्रपति/राज्यपाल की शक्तियों को लेकर बहस गहराने लगी। इसी बहस में Article 240 एक key reference बन गया — क्योंकि यह सीधे तौर पर इस बात से जुड़ा है कि भारत में elected सरकारों और nominated authorities के बीच अधिकारों की सीमा कहाँ तय होती है।
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साधारण भाषा में कहें तो Article 240 राष्ट्रपति को यह शक्ति देता है कि वह कुछ Union Territories (यानी ऐसे क्षेत्र जहाँ निर्वाचित सरकार की शक्ति सीमित या अनुपस्थित होती है) के लिए कानून बना सकें। यह कानून Regulations कहे जाते हैं लेकिन प्रभाव में वे Parliament द्वारा बनाए गए कानून की तरह ही लागू होते हैं। इसका उद्देश्य उन क्षेत्रों में प्रशासनिक व्यवस्था सुनिश्चित करना है जहाँ पूर्ण रूप से राज्य सरकार नहीं है या जहाँ सुरक्षा, भौगोलिक स्थिति या रणनीतिक महत्व के कारण governance model अलग रखा गया है — जैसे Lakshadweep, Andaman & Nicobar Islands, या Ladakh।
अब, बहुत लोग यह पूछते हैं कि जब Parliament है, राज्य सरकारें हैं, और न्यायपालिका है — तो फिर राष्ट्रपति या केंद्र सरकार को Union Territories के लिए अलग से कानून बनाने की जरूरत क्यों पड़ती है? इसका जवाब थोड़ा इतिहास में छुपा है। भारत की स्वतंत्रता के बाद कई ऐसे क्षेत्र थे जहाँ पूर्ण लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू करना तुरंत संभव नहीं था — कुछ जगहें सामरिक रूप से संवेदनशील थीं, कुछ आर्थिक रूप से कमजोर थीं और कुछ सांस्कृतिक रूप से अलग। इसलिए संविधान ने ऐसा मॉडल बनाया जहाँ प्रशासनिक लचीलापन रहे, लेकिन लोकतंत्र की भावना का भी सम्मान हो।
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परंतु समय के साथ यह मॉडल सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था तक सीमित नहीं रहा — यह अब federalism की बहस का हिस्सा बन चुका है। खासकर Jammu & Kashmir के Union Territory बनने के बाद और फिर national politics में Punjab और Delhi जैसे राज्यों में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच बढ़ते टकराव के कारण इस प्रावधान पर गंभीर सवाल खड़े हुए।
Punjab मामले ने दिखाया कि जब एक राज्य की चुनी हुई सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव बढ़ता है, तो सवाल सिर्फ संवैधानिक प्रक्रिया का नहीं रहता बल्कि यह लोकतांत्रिक अधिकार, मुख्यमंत्री की सत्ता, मंत्रिमंडल की सलाह, और जनता द्वारा चुनी गई सरकार के सम्मान का मुद्दा बन जाता है। अदालत ने अपने आदेश में साफ कहा कि राज्यपाल किसी elected government के ऊपर supervisory authority नहीं हैं बल्कि संविधान के trustee हैं। इस शब्द का अर्थ गहरा है — trustee का मतलब मालिक नहीं, बल्कि संरक्षक।
इसी संदर्भ में Article 240 की relevance बढ़ जाती है — क्योंकि यह हमें remind करता है कि भारत का संविधान power का केंद्र एक व्यक्ति या संस्था नहीं बनाना चाहता। राष्ट्रपति शक्तिशाली हैं, लेकिन absolute नहीं। राज्यपाल constitutional actors हैं, लेकिन elected representation से ऊपर नहीं। Parliament supreme है, लेकिन लोगों की sovereignty उससे भी बड़ी है।
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अगर हम Article 240 का real-life उदाहरण लें तो Lakshadweep controversy याद आएगी — जहाँ नए कानून और food, culture और administration से जुड़े नियमों को लेकर जनता ने विरोध दर्ज कराया था। उस समय लोगों ने पूछा था — क्या बिना local consent governing model लागू करना सही है? क्या administration लोगों के ऊपर होना चाहिए या जनता के साथ?
अब अगर यही model कोई राज्य होने पर लागू हो, तो विवाद स्वाभाविक है — क्योंकि राज्य में जनता elected government चुनती है और वही governance की authority होती है। लेकिन Union Territories में इस authority का स्वरूप अलग है — इसलिए Article 240 एक ऐसा rare constitutional balance है जिसमें flexibility और control दोनों शामिल हैं।
Punjab मामले ने indirectly एक constitutional प्रश्न उठाया — क्या भारत धीरे-धीरे centralized government model की ओर बढ़ रहा है या cooperative federalism की दिशा में? संविधान के makers ने स्पष्ट किया था कि भारत ना unitary है, ना classical federal — बल्कि एक federation with strong center है। यानी power diffusion है, पर national unity के नाम पर central intervention का अधिकार भी है।
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परंतु यह अधिकार unlimited नहीं है — और यहीं judiciary की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। Supreme Court और High Courts बार-बार remind करते हैं कि Indian democracy की शक्ति institution या office से नहीं, बल्कि जनता के mandate से आती है। Governor, President और केंद्र सरकार चाहे कितनी भी constitutional power के साथ आएँ — elected government की accountability और legitimacy को bypass नहीं किया जा सकता।
Article 240 इसी tension का प्रतीक है — power और democracy के बीच का पुल और कभी-कभी conflict point।
आने वाले समय में जैसे Ladakh statehood movement, Delhi governance act, और northeast administration पर national debate बढ़ेगी — Article 240 और भी महत्वपूर्ण प्रावधान के रूप में सामने आएगा। यह सिर्फ कानून नहीं — बल्कि governance philosophy है।
निष्कर्ष
Article 240 भारत के संविधान की उस कोशिश को दर्शाता है जहाँ देश एक साथ diverse administrative systems को accommodate करता है। लेकिन जैसे-जैसे लोकतंत्र मजबूत होता है — सवाल उठते हैं कि क्या nominated authority को legislative power देना लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध है? Punjab विवाद ने एक बात स्पष्ट कर दी है — संविधान flexibility देता है, पर power को uncontrolled नहीं रहने देता। लोकतंत्र का ultimate source संविधान में लिखा नहीं — बल्कि जनता के मत में है।
