भारत में पुलिस व्यवस्था लोकतंत्र का बेहद महत्वपूर्ण स्तंभ है। पुलिस का काम है—अपराध रोकना, जांच करना, जनता की सुरक्षा करना और कानून-व्यवस्था बनाए रखना। लेकिन यही पुलिस जब अपने अधिकारों का गलत उपयोग करती है, अनुचित दबाव बनाती है, गैरकानूनी हिरासत में रखती है, पैसे मांगती है, या झूठे मामले बनाती है—तो इसे आज की भाषा में Police Harassment कहा जाता है। सामान्य लोग इस harassment को पहचान भी नहीं पाते, क्योंकि इसे “system ka part” मानकर सह लेते हैं। इस लेख का उद्देश्य है—एक आम भारतीय नागरिक को सरल भाषा में यह समझाना कि पुलिस harassment वास्तव में क्या होता है, नई कानूनी धाराओं के हिसाब से क्या-क्या गैरकानूनी है, और किन पुलिस कार्रवाइयों को कानूनन सही माना जाता है।

नए क्रिमिनल कानून—Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS), Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita (BNSS) और Bharatiya Sakshya Adhiniyam (BSA)—ने पुराने IPC, CrPC और Evidence Act को बदल दिया है। इसलिए पुलिस शक्तियों, गिरफ्तारी और FIR से जुड़े कई नियम अब नई धारा संख्या के साथ लागू होते हैं। लेकिन मूल सिद्धांत वही हैं—पुलिस की शक्ति सीमित है, मनमानी नहीं कर सकती, और किसी नागरिक की गरिमा व अधिकारों का हनन नहीं कर सकती।
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सबसे पहले समझते हैं कि पुलिस harassment किन-किन रूपों में सामने आता है और इसे कैसे पहचाना जा सकता है।
Illegal Detention (गैरकानूनी हिरासत) – BNSS के तहत सबसे गंभीर harassment
भारत का कानून (BNSS की धाराएँ 35–39, 48, 58 आदि) कहता है कि किसी को सिर्फ सही आधार होने पर ही गिरफ्तार किया जा सकता है। और गिरफ्तारी के बाद 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना अनिवार्य है। लेकिन व्यवहार में अक्सर ऐसा होता है कि पुलिस किसी व्यक्ति को पूछताछ के नाम पर थाने बुलाकर घंटों तक बैठाए रखती है, घर वालों को खबर नहीं देती, लिखित रिकॉर्ड नहीं बनाती और फिर उस पर दबाव बनाती है कि वह अपनी बात “स्वीकार” करे। लोग समझ नहीं पाते कि बिना लिखित नोटिस (BNSS धारा 35A), बिना entry, और बिना कारण – थाने में बैठाकर रखना भी हिरासत ही माना जाता है। और जब यह हिरासत कानूनन नहीं है, तो यह harassment है।
एक उदाहरण लें—किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए घंटों रोक लिया जाता है कि उसका “बर्ताव संदिग्ध लगा”, या “थोड़े सवाल पूछने हैं”—पर न कोई लिखित नोटिस, न पूछताछ रिकॉर्ड, न कोई केस दर्ज। यह illegal detention है और सीधा-सीधा नागरिक के Article 21 (जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार) का उल्लंघन।
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Threats, Abuse of Power और डराना-धमकाना – अब BNS धारा 351 के तहत अपराध
कई लोग बताते हैं कि पुलिस कहती है—“जो बोलेगा वही होगा”, “देख लेंगे”, “घर में घुसकर उठा लेंगे”, या “वरना झूठा केस लगेगा”—यह शक्ति के दुरुपयोग का स्पष्ट उदाहरण है। पहले IPC 503 था, अब यह BNS धारा 351 (Criminal Intimidation) के तहत दंडनीय अपराध है। धमकी चाहे मौखिक हो या संकेतों में—यह harassment है, क्योंकि यह किसी नागरिक को उसकी स्वतंत्रता से वंचित करने का प्रयास है।
Money Demand – रिश्वत या ‘सेटेलमेंट’ की मांग
पुलिस का कोई भी अधिकारी यदि जांच में ढील देने, आरोपी न बनाने, FIR न लिखने या केस “सेटल” करने के नाम पर पैसे मांगता है, तो यह Prevention of Corruption Act का अपराध है। harassment का यह रूप सबसे आम और सबसे खतरनाक है, क्योंकि यह गरीबी, डर और अनजानपन का फायदा उठाता है। जैसे जब कोई कहता है—“समझदार हो… थोड़ा सहयोग कर दो… मामला यहीं निपटा देंगे”—यह soft-touch harassment होता है, लेकिन कानून में यह बराबर अपराध है।
FIR दर्ज न करना – BNSS की नई धारा 173 के तहत गैरकानूनी
अक्सर पुलिस FIR दर्ज करने से बचती है। बहाने होते हैं—
“Jurisdiction नहीं है”,
“पहले compromise कर लो”,
“कोर्ट से order लेकर आओ”,
“यह civil matter है।”
पर ये बहाने कानून के खिलाफ हैं।
पहले CrPC 154 था, अब BNSS की धारा 173 लागू है—और यह कहता है कि Cognizable अपराध में पुलिस FIR दर्ज करने के लिए बाध्य है। Zero FIR की व्यवस्था भी जस की तस है। जब पुलिस जानबूझकर FIR नहीं लिखती, टालती है या बार-बार चक्कर लगवाती है, तो यह harassment का स्पष्ट संकेत है।
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Fake Cases – BNS की धारा 197, 220, 221 के तहत दंडनीय अपराध
भारत में झूठी FIR लगना या किसी निर्दोष व्यक्ति को अपराध में फँसा देना एक बहुत सामान्य प्रकार का harassment है। अब यह BNS में इन धाराओं के तहत आता है—
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धारा 197 – झूठी सूचना देना
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धारा 220 – झूठा आरोप लगाना
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धारा 221 – किसी को जानबूझकर गलत तरीके से फँसाना
अगर पुलिस जानबूझकर गलत केस बनाती है, किसी राजनैतिक, व्यक्तिगत या बाहरी दबाव में काम करती है, या किसी निर्दोष नागरिक को “example बनाने” के लिए केस में फँसा देती है—तो यह harassment है और कानून इसे गंभीर अपराध मानता है।
Police Harassment की पहचान कैसे करें? एक Practical Citizen Guide
ज़्यादातर harassment इसलिए होता है क्योंकि लोग जानते ही नहीं कि क्या legal है और क्या illegal। इसलिए कुछ सरल संकेत––
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लिखित नोटिस दिए बिना बार-बार थाने बुलाना
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घंटों बिठाए रखना बिना पूछताछ रिकॉर्ड किए
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बिना वॉरंट किसी घर में प्रवेश करना (BNSS की धारा 84–86 के अपवादों को छोड़कर)
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मोबाइल फोन जब्त करना बिना seizure memo (BNSS धारा 94)
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गाली देना, धक्का देना, अपमानित करना
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रात में महिला से पूछताछ या गिरफ्तारी (BNSS धारा 43(4) इसे रोकती है)
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पैसे/उपहार/कमीशन की मांग
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FIR लिखने से इनकार
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“झूठा केस लगा देंगे” कहना
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“ऊपर से order है, मानना पड़ेगा” जैसी धमकी
इनमें से कोई एक भी संकेत लगातार दिखे तो यह harassment है।
कौन-सी Police Actions कानूनी होती हैं? (Legal Powers – ताकि भ्रम न रहे)
पुलिस की कुछ powers कानून रूप से दी गई हैं, और इन्हें harassment नहीं माना जाता यदि इनका उपयोग उचित प्रक्रिया के साथ किया जाए।
जैसे—
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BNSS धारा 35–39 के अनुसार गिरफ्तारी
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section 173 के अनुसार FIR दर्ज करना
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अपराध रोकने के लिए preventive action
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सड़क चेकिंग और breath analyser
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वॉरंट के आधार पर तलाश और जब्ती
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गंभीर अपराधों में पूछताछ
अगर पुलिस इन powers का उपयोग सम्मानजनक और रिकॉर्डेड प्रक्रिया के साथ करती है—तो यह harassment नहीं, बल्कि वैध कानून-पालन है।
कौन-सी Police Actions अब Illegal मानी जाती हैं? (Illegal Powers – Updated Law)
नए कानूनों में भी वही मूल अधिकार सुरक्षित हैं—
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बिना आधार गिरफ्तारी (BNSS 35 का उल्लंघन)
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24 घंटे से ज़्यादा हिरासत (BNSS 48 का उल्लंघन)
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महिलाओं की रात में गिरफ्तारी (BNSS 43(4))
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torture, मारपीट, जबरन स्वीकारोक्ति (BSA की धारा 23 – “confession to police inadmissible”)
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बिना वजह मोबाइल खंगालना, चैट पढ़ना
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सोशल मीडिया पर नजर रखकर धमकी देना
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जांच में पक्षपात
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लिखित रिकॉर्ड न रखना
ये सभी कार्रवाई संविधान और नए कानून दोनों के खिलाफ हैं।
यदि Police Harassment हो तो नागरिक क्या करें? Practical Legal Remedies
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SP/DCP को लिखित शिकायत (ईमेल भी मान्य)
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112/100 नंबर की कॉल रिकॉर्ड
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BNSS धारा 176 के तहत मजिस्ट्रेट जांच की मांग
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High Court में Habeas Corpus (illegal detention में)
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NHRC/SHRC में शिकायत
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ACB/Vigilance में भ्रष्टाचार की शिकायत
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शिकायत करते समय audio-video recording एक महत्वपूर्ण साक्ष्य
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महिला होने पर महिला पुलिस की मांग—यह आपका अधिकार है
सही समय पर कानूनी कदम harassment को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका है।
निष्कर्ष: पुलिस harassment कानून और लोकतंत्र दोनों पर हमला है
पुलिस को शक्तियाँ दी गई हैं, पर बिना नियंत्रण के शक्ति हमेशा खतरा बन जाती है। नागरिकों का यह अधिकार है कि वे जानें कि पुलिस क्या कर सकती है और क्या नहीं। Harassment की पहचान और नए कानूनों की समझ मिलकर एक मजबूत नागरिक समाज बनाती है।
कानून का उद्देश्य जनता की सुरक्षा है—not their fear.
FAQs
1. Police Harassment क्या माना जाता है?
पुलिस द्वारा गैरकानूनी हिरासत, धमकी, पैसे की मांग, झूठा केस लगाना या FIR न लिखना harassment है।
2. Illegal Detention नए BNSS में कैसे परिभाषित है?
BNSS धारा 48 व 58 के अनुसार बिना आधार हिरासत या 24 घंटे से अधिक रोकना illegal detention है।
3. क्या पुलिस FIR दर्ज करने से मना कर सकती है?
नहीं। BNSS धारा 173 के अनुसार FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
4. Fake Case पर क्या कार्रवाई संभव है?
BNS धारा 197, 220 और 221 के तहत गलत आरोप और झूठा केस दंडनीय अपराध है।
5. क्या पुलिस का फोन चेक करना legal है?
केवल BNSS धारा 94 के अनुसार उचित आधार होने पर और seizure memo बनाकर।
6. महिला की रात में गिरफ्तारी legal है?
BNSS 43(4) के अनुसार सामान्य परिस्थितियों में नहीं।
7. क्या पूछताछ की रिकॉर्डिंग करना legal है?
हाँ। अपनी सुरक्षा के लिए audio-video proof लेना वैध है।