आज भारत में साइबर अपराध जीवन के हर हिस्से को प्रभावित कर रहा है—बैंकिंग, सोशल मीडिया, पहचान चोरी, फर्जी कॉल, डिजिटल अरेस्ट, निवेश धोखाधड़ी, UPI स्कैम, loan app harassment, और रोज़ बदलते नए नए तरीक़े। इस पूरे माहौल में आम नागरिक सबसे ज़्यादा एक ही सवाल पूछता है—यदि मेरे साथ cyber fraud हो जाए, तो स्थानीय पुलिस स्टेशन में FIR कैसे दर्ज कराऊँ? और क्या यह सही है कि पुलिस यह कहकर FIR दर्ज नहीं करती कि “यह साइबर सेल का मामला है”?
दिलचस्प बात यह है कि जितना भ्रम आम जनता में है—उतना ही भ्रम पुलिस में भी दिखाई देता है। लेकिन कानून स्पष्ट है। BNSS (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita) 2023 में शामिल धारा 173 (पूर्व में CrPC 154) बिल्कुल साफ कहती है कि किसी भी संज्ञेय अपराध की जानकारी मिलते ही FIR दर्ज करना पुलिस की बाध्यता है। साइबर अपराध 90% मामलों में संज्ञेय अपराध होते हैं—जैसे cheating, impersonation, forgery, extortion, data theft, identity fraud इत्यादि—जो कि Bharatiya Nyaya Sanhita और Information Technology Act 2000 के तहत अपराध हैं। इसका मतलब है कि अगर आपके साथ ATM, UPI, WhatsApp, Instagram, Facebook या किसी भी ऑनलाइन माध्यम से धोखाधड़ी हुई है, तो स्थानीय थाना Zero FIR दर्ज कर सकता है और करना ही पड़ेगा।
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लेकिन असल समस्या यहाँ से शुरू होती है—कानून कहता है कि FIR दर्ज होगी, जबकि व्यवहार में कई थाने मामले को cyber cell की ओर धकेलते हैं, या कहते हैं कि “हमारे jurisdiction में नहीं है, दूसरे थाने जाओ।” जबकि cyber crime में jurisdiction का कोई अर्थ नहीं बनता। यदि ठग बेंगलुरु में बैठकर दिल्ली में रहने वाले व्यक्ति को ठग ले, और उसका बैंक खाता किसी तीसरे राज्य में हो, तो कौन सा थाना jurisdiction रखेगा? इसी समस्या को समझते हुए Zero FIR की अवधारणा बनाई गई। Zero FIR का simple अर्थ है—आप देश के किसी भी थाने में FIR दर्ज करा सकते हैं, चाहे अपराध कहीं भी हुआ हो। बाद में पुलिस उचित jurisdiction वाले थाने को भेज देती है, लेकिन FIR आपके निकटतम थाने में ही दर्ज होगी।
जब कोई साइबर अपराध होता है, पहला कदम जनता को यह समझना चाहिए कि समय सबसे मूल्यवान वस्तु है। साइबर ठग पैसे को मिनटों में 4–5 परतों से गुज़ार देते हैं—wallets, mule accounts, crypto exchanges, और विदेशी खातों में। इसलिए तुरंत 1930 हेल्पलाइन पर कॉल करना ज़रूरी है। यह हेल्पलाइन राष्ट्रीय साइबर अपराध रोकथाम के लिए बनाई गई है, जिसका उद्देश्य पैसे को “hold” पर डालना है ताकि बैंक निकासी रोक सके। लेकिन अगर यह कदम देर से किया गया, तो FIR दर्ज होने के बाद भी पैसे वापस आने की संभावना बहुत कम होती है।
अब बात करते हैं डिजिटल फ्रॉड के एक बेहद ख़तरनाक रूप की—Digital Arrest Scam। यह अपराध न केवल पैसे की ठगी है, बल्कि मानसिक प्रताड़ना और डर का एक गहन रूप है। यह स्कैम भारत में पिछले दो वर्षों में भूकंप की तरह फैल गया है। इस स्कैम में ठग खुद को CBI, NCB, ED, Delhi Police या किसी केंद्रीय जांच एजेंसी का अधिकारी बताते हैं। वे पीड़ित को बताते हैं कि उसके आधार नंबर या फोन नंबर से ड्रग्स, मनी लॉन्ड्रिंग, या अंतरराष्ट्रीय अपराध जुड़ा है। वे कहते हैं कि “आप पर केस दर्ज हो गया है, और अभी आपको जांच के लिए डिजिटल रूप से हिरासत में लिया जा रहा है।” यह ‘डिजिटल अरेस्ट’ होता है।
इस स्कैम का एक वास्तविक उदाहरण दिल्ली में सामने आया, जहाँ एक महिला को बताया गया कि उसके नाम से एक illegal parcel पकड़ा गया है। डिजिटल अरेस्ट के नाम पर उसे पूरे दिन वीडियो कॉल पर रखा गया और 14 लाख रुपये निकलवाए गए। बाद में जब वह थाने पहुँची, तब उसे बताया गया कि यह पूरा स्कैम था।
इन सारे अपराधों से बचने के लिए कुछ बातें हमेशा याद रखनी चाहिए—कोई भी सरकारी एजेंसी व्हाट्सएप या वीडियो कॉल पर पूछताछ नहीं करती। कोई अधिकारी फोन पर arrest का आदेश नहीं देता। कोई verification fee नहीं लेता। कोई officer bank account details, UPI PIN या OTP नहीं मांगता। जितना अधिक व्यक्ति शांत रहेगा, उतनी ही जल्दी उसे समझ आएगा कि यह कॉल ठगी है।
थाने में कभी कोई यह कहे कि “साइबर सेल में जाओ”—तो आपको कानून समझाना चाहिए कि Zero FIR यहाँ दर्ज हो सकती है, और साइबर सेल को भेजना पुलिस का काम है, आपका नहीं। Supreme Court ने भी कहा है कि jurisdiction की तकनीकी बातें FIR दर्ज होने से पहले नहीं उठाई जा सकतीं।
इसके बाद आपकी FIR साइबर सेल जाएगी। साइबर सेल बैंक को पत्र लिखेगी ताकि वह पैसे पर hold लगाए। यदि hold timely लग गया, तो पैसा वापस आने की संभावना 30–40% रहती है। देर होने पर यह संभावना 5% से भी कम हो जाती है।
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आज के समय में जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है। यदि आप जानते हैं कि कोई असली सरकारी अधिकारी वीडियो कॉल पर arrest नहीं कर सकता, कि कोई verification शुल्क नहीं मांग सकता, और कोई आपको धमका नहीं सकता, तो आप 90% साइबर अपराधों से बच जाएँगे।
भारत डिजिटल हो चुका है, लेकिन डिजिटल दुनिया के अपराध भी डिजिटल तरीकों से ही रोक सकते हैं—जागरूकता, कानून की समझ, सही समय पर सही कदम, और सबसे महत्वपूर्ण, डर में आकर गलत निर्णय न लेना।
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अंततः यह समझना ज़रूरी है कि साइबर अपराध पीड़ित की गलती नहीं, बल्कि परिस्थितियों में फँसी हुई एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है। कानून पीड़ितों के साथ खड़ा है, और इसलिए FIR दर्ज करना, Zero FIR का अधिकार, डिजिटल साक्ष्य को संरक्षित करना, और 1930 पर रिपोर्ट करना—ये सभी कदम आपकी सुरक्षा की ढाल हैं। जब भी किसी अनजान नंबर से धमकी भरा कॉल आए, कोई सरकारी अधिकारी बनकर पैसे की मांग करे, या आपको digital arrest में रखने की कोशिश करे—यह समझ लें कि यह अपराध है और आप पूरी तरह सुरक्षित हैं।
