आज की तारीख भारत की डिजिटल कानूनी व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन कर उभरी है। Delhi High Court ने एक बार फिर साफ कर दिया कि किसी व्यक्ति की पहचान—चाहे वह उसका नाम हो, फोटो, आवाज, signature pose, dialogue, या digital avatar—किसी भी रूप में बिना उसकी अनुमति commercial use में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। यह फैसला सिर्फ सेलिब्रिटी मामलों तक सीमित नहीं रहा बल्कि कानून ने यह स्पष्ट कर दिया है कि Personality Rights अब भारत में एक सीमित privilege नहीं बल्कि व्यक्तिगत गरिमा, privacy और identity का कानूनी अधिकार हैं।
हाल के वर्षों में AI, deepfake videos, cloning technology, और बिगड़ते cyber frauds ने identity misuse को एक सामान्य समस्या बना दिया है। पहले यह समस्या फिल्म स्टार, खिलाड़ी, राजनेता या बड़े influencers तक सीमित मानी जाती थी, लेकिन अब इससे कोई भी सुरक्षित नहीं है—चाहे वह स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा हो, elderly parent हों या आम नागरिक। Identity अब केवल physical world तक सीमित नहीं रही, बल्कि digital दुनिया में भी किसी की छवि, आवाज, अभिव्यक्ति और मौजूदगी का मूल्य है, और उसका गलत उपयोग अब कानून के दायरे में अपराध माना जाएगा।
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Personality Rights की कहानी भारत में अचानक शुरू नहीं हुई। पिछले दशक में कई बड़े नामों ने अदालतों का दरवाज़ा खटखटाया। अमिताभ बच्चन ने एक ऐसे फर्जी विज्ञापन के खिलाफ केस दर्ज किया था जिसमें उनकी आवाज और तस्वीर का इस्तेमाल किया जा रहा था। अदालत ने तुरंत रोक लगाई और माना कि किसी भी इंसान की पहचान एक संपत्ति है जिसे कोई उसकी अनुमति के बिना इस्तेमाल नहीं कर सकता। इसके बाद रजनीकांत ने एक फिल्म प्रोडक्शन कंपनी के खिलाफ Madras High Court में मामला दर्ज किया था क्योंकि फिल्म में उनका नाम, स्टाइल और punchlines उपयोग हो रहे थे। अदालत ने कहा कि किसी मशहूर व्यक्ति की पहचान का उपयोग इस तरह करते हुए यह मान लेना कि दर्शक उसे उनसे जोड़कर देखेंगे, गलत और अवैध है।
आज आए फैसले में भी अदालत ने वही तर्क आगे बढ़ाया—लेकिन एक कदम और मजबूत तरीके से। इस मामले में रणबीर सिंह, विराट कोहली, अनुष्का शर्मा, शाहिद कपूर और अन्य सेलिब्रिटी की identity को AI द्वारा व्यावसायिक उपयोग के लिए reproduce किया जा रहा था — आवाज़ भी, चेहरे भी और स्वरों की प्रतिलिपि भी। अदालत ने कहा कि AI हो या मानव — consent ही आधार है, और consent के बिना किसी भी रूप में पहचान का उपयोग violation of privacy, misappropriation और passing-off है।
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दिलचस्प बात यह है कि अदालत ने इस फैसले में पहली बार बहुत स्पष्ट रूप से यह कहा कि Personality Rights केवल मशहूर लोगों तक सीमित नहीं हैं। ये अधिकार हर नागरिक के हैं। इसका सबसे बड़ा असर deepfake crime और साइबर धोखाधड़ी पर पड़ेगा। डिजिटल arrest scam, loan fraud scam, वॉइस cloning scam और वीडियो manipulation की घटनाएं पिछले महीनों में जिस तेजी से बढ़ी हैं, उससे यह निर्णय एक सुरक्षा ढाल की तरह सामने आया है।
Identity misuse केवल financial fraud नहीं होता — कई मामलों में यह humiliation, mental harassment और social damage में बदल जाता है। इंटरनेट पर ऐसी घटनाएँ आम हो चुकी हैं जहाँ लोगों की तस्वीरों से fake nudity AI tool के ज़रिए बनाई जाती है और उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है। अब यह स्पष्ट है कि ऐसी सामग्री बनाने वाला, प्रसारित करने वाला या उससे लाभ उठाने वाला व्यक्ति कानूनी दायरे में अपराधी माना जाएगा, चाहे पीड़ित व्यक्ति प्रसिद्ध हो या साधारण नागरिक।
कानून की नज़र में Personality Rights एक स्वतंत्र कानून नहीं हैं, बल्कि कई कानूनी ढाँचों का मिश्रण हैं। भारतीय संविधान का Article 21 — Right to Life — अब पूरी स्पष्टता से यह स्वीकार करता है कि जीवन का अर्थ सम्मान और privacy के साथ जीना भी है। इसी आधार पर Supreme Court पहले ही यह मान चुका है कि privacy भारत में एक मौलिक अधिकार है। Intellectual Property Law, DPDP Act 2023, IT Act 2000, और criminal law की impersonation और cheating से जुड़ी धाराएँ Personality Rights को enforce करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। साथ ही trademark और copyright law भी तब लागू हो जाते हैं जब किसी व्यक्ति की voice, dialogue, gesture या व्यक्तिगत शैली का commercial exploitation किया जाता है।
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यह फैसला influencers और सोशल मीडिया creators के लिए भी एक नया मार्ग खोलता है। अब उनके नाम, image या voice को commercial context में बिना consent इस्तेमाल करना सिर्फ गलत नहीं बल्कि कानूनी अपराध है। Digital content creators, streamers और गेमिंग दुनिया के लोगों के लिए यह एक संकेत है — आपका digital identity अब सिर्फ भावनात्मक या social मूल्य नहीं रखता, बल्कि यह आपकी intellectual property है।
अब सवाल यह उठता है कि आम व्यक्ति इस अधिकार का उपयोग कैसे कर सकता है? जवाब सरल लेकिन महत्वपूर्ण है — अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि उसकी पहचान का misuse हो रहा है, चाहे deepfake video हो या ऑनलाइन profile cloning, वह Cyber FIR (जिसमें Zero FIR भी लागू होती है) दर्ज कर सकता है। Digital platforms से content हटवाया जा सकता है (IT Rules 2021 के तहत Takedown Mechanism मौजूद है), legal notice भेजा जा सकता है और DPDP Act के अंतर्गत Right to Erasure का उपयोग किया जा सकता है।
भारत digital future की तरफ बढ़ रहा है, और digital future में identity ही सबसे मूल्यवान संपत्ति है। आज का फैसला इस दिशा में एक मजबूत कानूनी नींव की तरह है। अदालत ने न केवल यह स्पष्ट किया है कि पहचान पर अधिकार जन्मजात है, बल्कि यह भी कहा है कि consent के बिना इस्तेमाल exploitation है — चाहे वह विज्ञान के नाम पर हो, व्यवसाय के नाम पर या मनोरंजन के बहाने।
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संक्षेप में कहा जाए तो Personality Rights अब किसी विशेष वर्ग की सुविधा नहीं बल्कि आधुनिक डिजिटल शासन का आधार बन चुके हैं। अब पहचान निजी है, सुरक्षित है, और कानून उसके साथ है।
