भारत के वकील समाज और न्याय व्यवस्था के बीच पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता को बनाए रखना किसी भी लोकतंत्र की बुनियाद है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से राज्य बार काउंसिलों (State Bar Councils) के चुनावों में देरी, विवाद और अनियमितताओं की शिकायतें लगातार उठ रही थीं। इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने 10 नवंबर 2025 को एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए कहा कि अब बार काउंसिल चुनाव पूर्व हाईकोर्ट न्यायाधीशों की निगरानी में कराए जाएंगे, ताकि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी हों।
मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)
सुप्रीम कोर्ट का आदेश (Supreme Court’s Direction)
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा: “सभी राज्य बार काउंसिलों के चुनावों की अधिसूचना (notification) अब बिना किसी देरी के जारी की जाए। चुनाव प्रक्रिया एक स्वतंत्र सदस्य या बहु-सदस्यीय समिति की सीधी निगरानी (direct supervision) में संपन्न की जाए।” अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मुख्य याचिका और उससे जुड़े सभी आवेदन 18 नवंबर 2025 को दोबारा सूचीबद्ध होंगे, ताकि चुनाव की निगरानी से जुड़ी व्यवस्था को अंतिम रूप दिया जा सके।
क्यों लिया गया यह निर्णय? (Why This Step Was Necessary)
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चुनावों में देरी:कई राज्य बार काउंसिलों में वर्षों से चुनाव नहीं हुए। कुछ में विवाद अदालतों में लंबित हैं।
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पारदर्शिता की कमी:कई वकीलों ने आरोप लगाया कि चुनावों में प्रक्रिया स्पष्ट नहीं है, और मतदाता सूची तथा डिग्री सत्यापन में अनियमितताएँ हैं।
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विश्वास का संकट:जब वकील समुदाय ही अपनी प्रतिनिधिक संस्था पर भरोसा खो देता है, तो न्यायिक नैतिकता पर असर पड़ता है।
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BCI की भूमिका:बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने कई बार कहा कि डिग्री सत्यापन में कठिनाइयाँ हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि —
“सत्यापन को बहाना बनाकर चुनाव में देरी नहीं की जा सकती।”
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न्यायालय की मुख्य टिप्पणियाँ (Key Observations by the Bench)
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पूर्व हाईकोर्ट न्यायाधीशों की निगरानी में चुनाव:अदालत ने प्रस्ताव रखा कि प्रत्येक राज्य में एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश (Retired High Court Judge) की अध्यक्षता में स्वतंत्र चुनाव समिति बनाई जाए।
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स्वतंत्रता और निष्पक्षता:इस समिति को पूर्ण अधिकार होगा कि वह चुनाव प्रक्रिया की शुचिता और पारदर्शिता सुनिश्चित करे।
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कोई और देरी नहीं:अदालत ने कहा कि अब चुनाव प्रक्रिया में और देरी स्वीकार्य नहीं होगी।
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BCI अध्यक्ष की प्रतिक्रिया:बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मानन कुमार मिश्रा ने इस प्रस्ताव का विरोध नहीं किया, जिससे संकेत मिलता है कि संस्था भी सुधार के पक्ष में है।
इस आदेश का कानूनी और सामाजिक महत्व (Legal & Social Significance)
1. वकील समुदाय में विश्वास की पुनर्स्थापना:
जब चुनाव स्वतंत्र निगरानी में होंगे, तो युवा वकीलों और महिला अधिवक्ताओं को भी प्रक्रिया पर भरोसा बढ़ेगा।
2. राजनीतिक हस्तक्षेप पर अंकुश:
3. संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का सम्मान:
चुनावों में समान अवसर और स्वतंत्रता का अधिकार संविधान की भावना के अनुरूप होगा।
4. BCI की जवाबदेही:
सुप्रीम कोर्ट ने अप्रत्यक्ष रूप से बार काउंसिल ऑफ इंडिया को यह संकेत दिया कि वह केवल पर्यवेक्षक नहीं, बल्कि सुधारक की भूमिका निभाए।
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अगले कदम (Next Steps)
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18 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट मुख्य सुनवाई में यह तय करेगा कि –
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कौन-कौन से राज्य पहले चुनाव कराएँगे।
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प्रत्येक राज्य में कौन-सा सेवानिवृत्त न्यायाधीश निगरानी करेगा।
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चुनाव अधिसूचना जारी करने की समयसीमा क्या होगी।
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संभव है कि अदालत एक राष्ट्रीय स्तर की निगरानी समिति (National Supervisory Committee) गठित करे जो राज्यों की रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट को दे।
वकीलों की प्रतिक्रिया (Reactions from Legal Fraternity)
निष्कर्ष (Conclusion)
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम सिर्फ एक प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि वकील समाज में लोकतंत्र और नैतिकता की पुनर्स्थापना का प्रतीक है। यह निर्णय स्पष्ट संदेश देता है कि — “न्याय केवल अदालतों के भीतर नहीं, बल्कि वकीलों की संस्था में भी निष्पक्षता से होना चाहिए।” अगर यह मॉडल सफल होता है, तो आने वाले वर्षों में यह कानूनी संस्थाओं के चुनाव सुधार की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।
Download Order: सुप्रीम कोर्ट का आदेश: अब बार काउंसिल चुनाव पूर्व हाईकोर्ट जजों की निगरानी में होंगे
