भारत के नए आपराधिक कानून — Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS), Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita (BNSS), और Bharatiya Sakshya Adhiniyam (BSA) — लागू हो चुके हैं। इन नए कानूनों ने कई प्रक्रियाओं को सरल और स्पष्ट बनाया है, लेकिन “Transit Anticipatory Bail” जैसा एक महत्वपूर्ण क्षेत्र अब भी ऐसा है जिसे समझने में आम नागरिकों को काफी दिक्कत होती है। इसका कारण यह है कि नए कानूनों में भी ठीक उसी तरह, Transit Bail का ज़िक्र प्रत्यक्ष रूप से नहीं है, बल्कि यह एक Judicially Recognized Protection है — यानी अदालतों ने समय के साथ इस प्रावधान को विकसित किया है ताकि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जा सके।
यह लेख आपको बिल्कुल सरल भाषा में समझाएगा कि Transit Anticipatory Bail क्या होती है, यह क्यों ज़रूरी है, अदालतें इसे किन परिस्थितियों में देती हैं, इसकी सीमाएँ क्या हैं, और नए कानूनों के लागू होने के बाद इसकी व्यावहारिक स्थिति में क्या बदलाव आए हैं। यह लेख न केवल आम लोगों बल्कि युवा वकीलों, कानून के विद्यार्थियों, और पुलिस मामलों में फँसे लोगों के लिए भी स्पष्ट और गहराई से समझाएगा।
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सबसे पहले हमें इस अवधारणा को समझना होगा कि “बिना गिरफ्तारी के अग्रिम सुरक्षा” यानी anticipatory bail का उद्देश्य क्या है। भारतीय संविधान नागरिकों को Article 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसी अधिकार की रक्षा के लिए अदालतें anticipatory bail को एक ऐसा साधन मानती हैं जो किसी व्यक्ति को गलत तरीके से या जल्दबाज़ी में की जाने वाली गिरफ्तारी से बचाता है। BNSS (नया procedural law) के आने के बाद भी, anticipatory bail का मूल सिद्धांत वही है—अदालतें किसी व्यक्ति को यह भरोसा देती हैं कि मामले की जाँच तक उसे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, बशर्ते उसने अपराध में सहयोग किया हो और उसकी कोई दुर्भावना नहीं हो।
लेकिन कई बार ऐसा होता है कि FIR किसी दूसरे राज्य में दर्ज हो जाती है, और व्यक्ति उस राज्य में मौजूद कैसे पहुँच पाएगा, यह अपने आप में एक कठिन सवाल बन जाता है। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति दिल्ली में रहता है लेकिन उसके खिलाफ FIR महाराष्ट्र, असम या तमिलनाडु में दर्ज हो गई। संबंधित पुलिस कभी भी दिल्ली आकर उसे गिरफ़्तार कर सकती है, जबकि वह वहीं से anticipatory bail के लिए स्थानीय अदालत में भी आवेदन नहीं कर सकता — क्योंकि FIR वहाँ दर्ज नहीं है।
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इसी कानूनी जटिलता को कम करने के लिए भारतीय न्यायपालिका ने “Transit Anticipatory Bail” की अवधारणा विकसित की। इस तरह की सुरक्षा व्यक्ति को सिर्फ इतनी राहत देती है कि वह गिरफ्तारी से बचकर संबंधित राज्य की उचित अदालत तक पहुँच सके और वहाँ नियमित anticipatory bail या अन्य राहत के लिए आवेदन कर सके।
इसलिए Transit Anticipatory Bail का अर्थ यह नहीं है कि अदालत उस व्यक्ति को पूरे केस में स्थायी राहत दे रही है। इसका अर्थ है— “हम आपको केवल इतना समय दे रहे हैं कि आप उस राज्य में पहुँचे जहाँ FIR है, और वहाँ की अदालत में कानून अनुसार अपनी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन करें।” यह राहत आमतौर पर बहुत सीमित अवधि (जैसे 7–10 दिन) के लिए होती है।
भारत की कई प्रमुख उच्च न्यायालयों — जैसे दिल्ली हाई कोर्ट (2021), बॉम्बे हाई कोर्ट, कर्नाटक हाई कोर्ट, केरल हाई कोर्ट — ने इसे एक वैध और आवश्यक सुरक्षा माना है। क्योंकि अगर कोई व्यक्ति दूसरे राज्य में रहते हुए अचानक गिरफ्तारी के खतरे में है, तो वह अपने मौलिक अधिकारों का उपयोग ही नहीं कर पाएगा यदि उसे transit protection न मिले।
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Transit Anticipatory Bail देने के लिए अदालतें कुछ महत्वपूर्ण बातें देखती हैं — जैसे FIR की प्रकृति, शिकायत का समय, आरोपी का conduct, और इस बात का जोखिम कि बिना transit protection के व्यक्ति को रास्ते में या अपने घर से ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा। अदालतें यह भी देखती हैं कि क्या व्यक्ति अदालत से छिप रहा है या वह वास्तव में कानूनी प्रक्रिया का सम्मान करते हुए न्यायिक राहत चाहता है। Transit Bail कभी भी अंतिम सुरक्षा नहीं होती — इसका उद्देश्य केवल arrest से बचाकर संबंधित राज्य में पहुँचने की सुविधा प्रदान करना है।
कई real-life उदाहरण इसे साफ़ करते हैं। मान लीजिए कि लखनऊ का एक पत्रकार, जो दिल्ली में किसी कार्यक्रम के लिए आया हुआ है, उसके खिलाफ अचानक कोलकाता में FIR दर्ज हो जाती है। बंगाल पुलिस दिल्ली आकर किसी भी वक़्त उसे गिरफ्तार कर सकती है। ऐसे में वह दिल्ली हाई कोर्ट से Transit Anticipatory Bail ले सकता है, ताकि वह सुरक्षित तरीके से कोलकाता जाकर वहाँ anticipatory bail के लिए आवेदन कर सके। या मान लें कि एक छात्रा के खिलाफ रिश्तेदारों ने झूठा मामला बिहार में दर्ज कर दिया, जबकि वह पंजाब में पढ़ती है। ऐसे में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट उसे transit protection दे सकता है ताकि वह बिना डर बिहार जाकर अपने अधिकारों की रक्षा कर सके। अदालतें यह भी देखती हैं कि कहीं व्यक्ति transit bail का दुरुपयोग तो नहीं करेगा — यानी वह संबंधित राज्य की अदालत में समय पर पहुँचकर आगे की राहत के लिए आवेदन करे।
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नए criminal laws के तहत BNSS में arrest के नियम और safeguards बहुत स्पष्ट हैं। For example, §35 BNSS (Arrest without warrant) और §36 BNSS (Procedure of arrest) के तहत पुलिस को arrest करते समय कई प्रक्रियाओं का पालन करना होता है। इसका मतलब यह है कि arrest अब भी एक major constitutional interference माना जाता है और किसी भी arbitrary arrest से बचाने के लिए judicial safeguards पहले से अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। इसीलिए transit anticipatory bail आज भी उतनी ही आवश्यक है।
BNSS में यह भी प्रावधान है कि arrest के हर मामले में police को reasons-to-arrest और reasons-not-to-arrest दोनों लिखना होंगे। इसी वजह से transit bail एक constitutional bridge की तरह है, जो arrest की शक्ति और व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के बीच संतुलन बनाता है।
कई बार लोग यह गलती करते हैं कि वे Transit Bail को ही final bail समझ लेते हैं। लेकिन transit bail केवल “time protection” है। कई बार ट्रांजिट बेल लेने के बाद भी व्यक्ति को वहाँ की अदालत से anticipatory bail नहीं मिल पाती यदि अपराध गंभीर हो, पीड़ित के पास strong allegations हों, या व्यक्ति पर आरोप investigation में सहयोग न करने के हों। इसलिए transit bail केवल arrest से immediate protection है, न कि मामले में स्थायी राहत।
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Transit bail आवेदन करते समय कुछ documents बहुत जरूरी होते हैं—जैसे FIR की certified copy, गिरफ्तारी का खतरा दिखाने वाले तथ्य, residence proof, reason for not being able to travel immediately, और undertaking कि व्यक्ति संबंधित राज्य में जाकर कानूनी प्रक्रिया का पालन करेगा।
BNSS के बाद transit bail applications और भी महत्वपूर्ण हो गए हैं क्योंकि arrest को लेकर नए कानूनों में technological compliance और digital arrest records का प्रावधान है। इससे ये साबित करना आसान होता है कि पुलिस गिरफ्तारी के लिए सक्रिय थी या नहीं। कई बार पुलिस मोबाइल लोकेशन, digital surveillance, या tower dump data से भी यह दिखा देती है कि वह आरोपी की location trace कर चुकी है। ऐसे मामलों में transit bail जीवन रक्षक साबित होती है।
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Transit anticipatory bail को समझना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि यह न्यायपालिका का वह मानवीय चेहरा दिखाती है जिसका मकसद नागरिकों को procedural harassment से बचाना है। भारत में federal structure को देखते हुए interstate accusations बहुत आम हैं। ऐसे में transit bail यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी व्यक्ति केवल इसलिए अपनी स्वतंत्रता न खो दे क्योंकि FIR किसी दूरस्थ राज्य में दर्ज है।
